एक उजली सुबह,
ख्यालों के बादल..
मेरे दिल के आँगन में,
कुछ ओर नमी लेकर उतर आये..!
मेरे तन्हा घर मे दस्तक दी…
“कौन है ! कौन आया होगा ? ”
“किसी ने भूलकर दरवाज़ा खटखटाया होगा !”
एक भीनी सी खुश्बू,
एक शीतल सा एहसास,
और धुँधला–धुँधला सा सबकुछ..
अचानक ही ‘बसंत‘ मेरे घर आ गाया,
क्यारी के ‘फूल‘,
जो जाने कब से खिलाना भूल सा गये थे,
फिर अंगड़ाई सी ले रहे हैं !
उनके पत्तों पर उतार आई नमी….
बूँद बनकर, नए एहससों की रोशनी, बिखेरने लगती है !
“साँसों मे घुली मिठास…
ओर नया नया सा सबकुछ “
इतने प्यारे फूल, “ये मैने कब बोए थे !”
ये दीवारें, ” इन पर ये रंग तो ना था ”
ये आईना, ” ये तो झूठ नहीं बोलता, पर ये मैं तो नहीं हूँ!”
“और मेरी तन्हाई…
वो कहाँ है ”
ये क्या हो रहा है, मैं हूँ पर.. मैं,
“दिल तो कुछ ओर कह रहा है ?”
ओ ख़यालो..
“ये किसका ‘साथ‘ है तेरे साथ !
जिसने मेरे ही मन को मुझसे ही..
अजनबी कर दिया है !!”
“और ये रोशनी कैसी,
मेरे मन मे तो कोई सूरज नहीं है ”
“ये आईना इसपर किसने जादू किया है”
इन फूलों को तो देखो,
जैसे सारा गुलशन ही समेट लिया है !
बोलो ना, किसका ‘साथ‘ है, तेरे साथ…
कोई आने वाला है..
रेहने को तेरे दिल में,
उसका ही जादू है तेरे मन में,
ये आईना झूठ नहीं हक़ीकत है,
तुझे भी तो उसी की हसरत है !
वो ही तो है , तेरी रोशनी…
और वोही तो तेरा सूरज है,
अब वो आ रही है, तो..
उस ‘परी‘ को आपने मन के,
मुरझाए फूल दिखाएगा,
चल ‘ मन ‘ तू अब,
हर पल एक नया फूल खिलाएगा…!
“‘परी“, परी है‘ !! तो मेरे पास क्यों आएगी,
हाँ चलो हसरत है, तो क्या “परी” मिल जाइएगी..
और ‘मन‘, तू तो पागल है,
इन ख़यालों की बातों मे आ गया…
आरे पागल चाँद क्या हथेली मे समाएगा..
और इतना बड़ा सूरज,
क्या तुम्हे मिल जाएगा.. !
“पागल!” चल फिर तन्हाई ढूंढते हैं,
और इन फूलों को उखाड़ फेकते हैं !
केह दो इन ख़यालों से,
“बसंत” ले कर बाहर जाये..
और केह दो हमे इस तरह तो ना सताये,
हाँ प्यारे हैं तो क्या..
झूठे ख्वाब तो ना दिखाए !
क्योंकि सपनो के टूटने पर,
ये सारे आईने टूट जायेंगे..
टूट कर चुभेंगे, तुझे और मुझे..
और ये ख़याल दूर खड़े मुस्कुराएगे !
फिर किसी का तो क्या…
खुद का चेहरा नहीं देख पाएगा,
फिर जाने तू, कब संम्भल पाएगा…
“मन” बोझिल कदमो से चलता..
आपने फूलों.. “
दरवाजे पर फिर से दस्तक,
एक मीठा सा तेज़ उजाला..
एक प्यारा सा संगीत, हँसता बादल,
जाना पहचाना सा सूरज..
और पूरा गुलशन..
मेरा पागल मन !
nice poem..!!!!
kaafi saral bhasha ka prayog aur utkrista dhang se apne man k bhav ko vyakt karne k liye aap tarifk kabil hain….!!!
a good combination of hope and despair 🙂
hey sachin, good work boss.
hey nice lines sachin. can we hear it from u.
keep it up. sachin
aaye tum yaad mujhe, gaane lagi har dhadkan
khushboo layee pawan mehaka chandan
aaye tum yaad mujhe..
..yeh dil to bawra hai, kabhi unki yaad aane pe jhoom ooth ta hai aur kabhi unki yaad aane pe udaas ho jata hai.
ओ ख़यालो..
“ये किसका ‘साथ‘ है तेरे साथ !
जिसने मेरे ही मन को मुझसे ही..
अजनबी कर दिया है !!”
“और ये रोशनी कैसी,
मेरे मन मे तो कोई सूरज नहीं है “
“ये आईना इसपर किसने जादू किया है“
इन फूलों को तो देखो,
जैसे सारा गुलशन ही समेट लिया है !
बोलो ना, किसका ‘साथ‘ है, तेरे साथ…
i really like these lines.I like this poem the most Keep It up. Day by day ur lines becomes more sensible…….Best of Luck
hi sachin, this poem its quite different from ur other poems but really nice work.
hey nice work.
hey sachin keep it up
hey
nice poem
evn i m inspired by u 2 start writin again.
dis is a masterpiece ya!! 🙂
n by the way… ayegi…pari…ayegi !!!!
hey its a wonderful peice!! i really loved it.
keep it up!!
nice poem dear…………………really…..lovely….
its very fine and good i like this
hey sachin this one is my fav.
mera pagal mann (IMPRESSIVE )
nice ..keep it up dude..!!
अभी आपका ब्लॉग देखा पढ़ा .बहुत अच्छा लिखते हैं आप …शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने का
बहुत अच्छा..!!
Mann ka kya hai…pagal ghode ki tarah bhagta hi rehta hai…..sach,mann toh pagal hai !! beautifully captured escapades within the inner recesses of a sensitive soul…..not a sound to the outside world…..its all within…..such open admissions often leave the reader breathless…..fantastic !!!